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Author: चौथी दुनिया
आमी का गंदा जल सोहगौरा के पास राप्ती नदी में मिलता है। सोहगौरा से कपरवार तक राप्ती का जल भी बिल्कुल काला हो गया है। कपरवार के पास राप्ती सरयू नदी में मिलती है। यहां सरयू का जल भी बिल्कुल काला नज़र आता है। बताते हैं कि राप्ती में सर्वाधिक कचरा नेपाल से आता है। उसे रोकने की आज तक कोई पहल नहीं हुई। पिछले दिनों राप्ती एवं सरयू के जल को इंसान के पीने के अयोग्य घोषित किया गया। कभी जीवनदायिनी रहीं हमारी पवित्र नदियां आज कूड़ा घर बन जाने से कराह रही हैं, दम तोड़ रही हैं। गंगा, यमुना, घाघरा, बेतवा, सरयू, गोमती, काली, आमी, राप्ती, केन एवं मंदाकिनी आदि नदियों के सामने ख़ुद का अस्तित्व बरकरार रखने की चिंता उत्पन्न हो गई है। बालू के नाम पर नदियों के तट पर क़ब्ज़ा करके बैठे माफियाओं एवं उद्योगों ने नदियों की सुरम्यता को अशांत कर दिया है। प्रदूषण फैलाने और पर्यावरण को नष्ट करने वाले तत्वों को संरक्षण हासिल है। वे जलस्रोतों को पाट कर दिन-रात लूट के खेल में लगे हुए हैं। केंद्र ने भले ही उत्तर प्रदेश सरकार की सात हज़ार करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी परियोजना अपर गंगा केनाल एक्सप्रेस-वे पर जांच पूरी होने तक तत्काल रोक लगाने के आदेश दे दिए हों, लेकिन नदियों के साथ छेड़छाड़ और अपने स्वार्थों के लिए उन्हें समाप्त करने की साजिश निरंतर चल रही है। गंगा एक्सप्रेस-वे से लेकर गंगा नदी के इर्द-गिर्द रहने वाले 50 हज़ार से ज़्यादा दुर्लभ पशु-पक्षियों के समाप्त हो जाने का ख़तरा भले ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की पहल पर रुक गया हो, लेकिन समाप्त नहीं हुआ। गंगा और यमुना के मैदानी भागों में माफियाओं एवं सत्ताधीशों की मिलीभगत साफ दिखाई देती है। नदियों के मुहाने और पाट स्वार्थों की बलिवेदी पर नीलाम हो रहे हैं।
बहुत सटीक चित्रण..... यही नज़ारा है हर जगह .....
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति के लिए आभार