Wednesday, 29 June 2011

कन्नूर से ....


ज्ञानेन्द्रपतिजी की नदी और साबुन कविता पर एक सराहनीय प्रयास।श्री लक्षमणनजी(जी.एच.एस.एस,कुजिमंगलम) से तैयार किए गए ये प्रसन्टेशन और अनुवाद पढ़िए।
लक्षमणनजी को बधाइयाँ और धन्याद।
डौनलोड करें
१.प्रसन्टेशन (ओ.डी.टी. लिनक्स केलिए)
२.प्रसन्टेशन (पी.डी.एफ)
३.कविता का मलयालम अनुवाद (पी.डी.एफ)

2 comments:

  1. बातचीत
    गौरा और साथियाँ

    गौरा :- अरे दोस्तो.....

    कुत्ता:- गौरा.....

    गौरा :- कल तू कहाँ था ?

    कुत्ता:- मैं इधर-उधर घूम रहा था।

    गौरा :- हमारी बिल्ली कहाँ है ? आज देखते ही नहीं।

    बिल्ली:-अरे दोस्तो...!!

    कुत्ता:- अरे बिल्ली...हम तुम्हारे बारे में कह रहे थे।

    गौरा :- हाँ बिल्ली...इतनी देर तू कहाँ थी ?

    बिल्ली:-मैं कोयल दीदी के पास थी।

    गौरा :- कोयल दीदी के पास....!! वहाँ क्या बात है ?

    बिल्ली:-वहाँ कोयल दीदी की गानालापन थी।

    कुत्ता:- अरे,क्या गानालापन खतम हो गई ?

    बिल्ली:-हाँ....अभी खतम हुआ है।

    गौरा :- अरे,हमारे कोयल दीदी की गानालापन....!!मेरी प्रिय गायिका है दीदी।

    कुत्ता &बिल्ली:- (एकसाथ) मेरा भी..

    गौरा :- महादेवीजी की मोटर गाड़ी आ गई।देवीजी आई...बाँ....बाँ....बाँ....बाँ.........

    देवीजी:-अरे! प्यारे..........कैसे है ?

    गौरा :- देवीजी....अब तक हम सब आपकी प्रतीक्षा कर रही थी।

    देवीजी:-देखो,तुम्हारे लिए मैं क्या लाई हूँ..?

    गौरा :- अरे!हाय! दही-पेड़ा...हमारे लिए..!!!

    कुत्ता:- मेरा प्रिय खाद्य है यह..

    बिल्ली:-मेरा भी...

    गौरा :- तीन दही-पेड़ा है...हम तीनो में बाँटूँ।

    देवीजी:- अच्छा....तुम खालो...मैं अभी आऊँ...।

    (खतम)
    आष्नी सलीं
    कक्षा 10
    जी.एच.एस.पेरिंड्॰डाश्शेरी

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